बलिया: समय के चलते अपने को परिवर्तन तो किए लेकिन अपनों को छलका ते रहे कुछ परिवार में लोग अपने नाम के पीछे सिंह लगकर सिंह बने हुए हैं जो आज भी राजपूतों की बिरादरी ओं में उनके लड़कियों के साथ शादी करते हैं लेकिन बच्चा ने अपनी लड़कियों की शादी नागवंशी यों से की है हर्ष प्रताप नारायण जो आज भी राजा के नाम से चर्चित हैं राजा से यूनाइटेड भारत हिंदी दैनिक जिला प्रतिनिधि के से एक मुलाकात में उन्होंने कहा कि हम राजवीर महाराजा सुहेलदेव के वंशज है और जाति के राजभर हैं हल्दी राज्य बलिया जनपद प्राचीन काल से ही अपनी विशेषताओं के लिए आ रहा है। लोग एवं पुरानो की कथाएं इनको राजा बलिया राजा यज्ञ सेन राजभर वीरसेन प्रवचन भिगू दर्द मुनि राजा मुरधलोरिक राजा रूद्र सेन राजभर से जोड़ती है गंगा घाघरा सरयू तथा तमसा तो नदियों के संगम स्थल ने जनपद को महत्तम सांस्कृतिक परंपरा वह महानता से जोड़ रखा है राष्ट्र के संस्कृत विद्वानों ने काशी में अपनी विद्वता का प्रदर्शन कर विमल क्रांति अति है। देश में जिस प्रकार गंगा व यमुना के संगम को प्रयागराज गंगा व यमुना के संगम को काशी क्षेत्र के नाम से प्रसिद्धि मिली है उसी प्रकार यह भी एक संगमस्थली है हल्दी दीप महाराज यज्ञसेन द्वारा बलिया के चतुमुख विष्णु मंदिर का निर्माण हो जाने के बाद या क्षेत्र भिगो क्षेत्र के नाम से जाना जाने लगा गंगा और घाघरा नदियों के कारण वर्षा काल में बाढ़ की विविधता किसे जनपद का अधिकांश भाग प्रभावित होता है परंतु इन नदियों का क्षेत्र द्वारा में उर्वरा है वर्तमान शहर में स्थित महावीर घाट से दक्षिण-पश्चिम कोने कोने पर लगभग 4 किलोमीटर दूर गंगा नदी में टोल नदी मिलकर संगम बनाती है प्राचीन समय में यह संगम पश्चिम से सूरह बासनी थाना से लेकर पूर्व में हास नगर के बीच कहा जाता था गंगा नदी में घाघरा नदी आकर वर्तमान समय में जयप्रकाश नगर से आगे पूर्व कोने पर बिहार प्रांत के छपरा जिले में लगभग 5 किलोमीटर भीतर चलकर संगम बनाती है जनपद में नदियों का बहाव मार्ग सदा बदलते रहने के कारण जनपद के हृदय स्थल में डाल कलाइयों की भरमार है शहर के उत्तर दिशा में 8 किलोमीटर की दूरी पर लगभग 500 एकड़ भूमि में सुरहा ताल से पानी की निकासी होती है ।
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