दिनों हर किसी की जुबान पर सुनने को मिल रही है। कैंसर से लेकर अन्य कई असाध्य रोगों पर होम्योपैथिक पद्धति के अनुसार दवाओं की खोज करने में जुटे डा. एमडी सिंह ने हृदय में एक महान कवि भी छिपा हुआ है। जिसे वह अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों के समक्ष प्रस्तुत करते है। इनकी कई काव्य रचनाएं जिसमें से 'कक्कुर' व अन्य कई पूर्वांचल विश्वविद्यालय के एमए फाइलन के समेस्टर में शामिल किया गया है। हवा की तबीयत ख़राब है, न कहिए कि नीयत (मंशा) खराब है। कहीं सर्दी उकसा रही उसे तो गर्मी दिखाए रुआब है, और कोई साथ दे ना दे हो रहा बादल बेताब (व्याग्र) है। खड़ी गुमसुम सी है जो हवा, मन बसा दरखूतों (वृक्ष) का खूवाब है। लाई तूफ्फन मकानों में, पीठ पर समंदर का आब (पानी) है। बन आग समाई सीने में, यह रहन-सहन का हिसाब है। 'हवा' यानि जीवन रुपी आक्सीजन पर आधारित डा. एमडी सिंह की इस काव्य रचना का हर कोई दिवाना हो गया है। इस सम्बंध में डा. एमडी सिंह ने 'डीएनए' जिला संवाददाता से हुई वार्ता के दौरान बताया कि प्रदूषण ने हवा के स्वास्थ्य को बीमार सा बना दिया है। इसी पर आधारित इस कविता की रचना की गई है।
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